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Voyager 1 Mission का अंत कैसे होगा? End Of The Best Mission

Voyager 1 Mission: आज से करीब 42 साल पहले 5 सितंबर 1977 को voyager 1 mission को launch  किया गया था और तब से लेकर आज तक यह मिशन इस अँधेरे से भरे अन्तरिक्ष की गहराइयों में सफ़र कर रहा है। Voyager mission मानवता द्वारा बनाया गया एकमात्र ऐसा मिशन है और स्पसक्रेफ्ट है या फिर आप एक ऐसा ऑब्जेक्ट कह सकते हैं जो अन्तरिक्ष में सबसे ज्यादा दूर तय कर चुका है। वायेजर 1 आज के समय हमारे सौरमंडल के बाहरी वातावरण को भी पार करके Interstellar Space में जा चुका है।

अभी तक voyager 1 तकरीबन 21.7 अरब किलोमीटर की दूरी तय कर चुका है, लेकिन सबसे मजेदार बात तो ये है की यह spacecraft हमसे इतनी दूर होने के बाद भी हमारे संपर्क में लगातार बना हुआ है| वायेजर 1 की Interstellar Space में गति और पोजीशन को हम लगातार ट्रेस कर रहे हैं। लेकिन एक बड़ा सवाल ये है की आखिर ये खेल कब तक चलता रहेगा, और ये कब तक हमसे संपर्क में रहेगा। हम वायेजर 1 को कितनी दूरी तक ट्रेस कर पायेंगे और आखिर में आखिरी सवाल ये है कि वायेजर 1 का अंत कब होगा।

Voyager 1 Mission

साल 1964 में Aerospace Engineer Gary Flandro ने notice किया कि 1970 के दशक में ब्रहस्पति, शनि और नेपच्यून सीधी लाइन में आने वाले हैं, तब उन्होंने Grand Tour नाम के Concept को वैज्ञानिक दुनिया के सामने पेश किया। वे इस project के जरिये सौरमंडल के सभी बाहरी ग्रहों को करीब से देखना चाहते थे|  इस concept के according दो spacecraft को launchकिये जाने थे, जिससे हम सौरमंडल के सभी outer planets, जिसमे pluto भी शामिल है, को करीब से देख सकते और उनकी तस्वीर भी ले सकते थे। इस concept को ही बाद में एक mission में बदल दिया गया। जिसे The grand tour program के नाम से जाना जाता है।

लेकिन बदकिस्मती से यह program कुछ कारणों से सोचे गए तरीकों से शुरू नहीं किया जा सका और इस mission को बंद कर दिया गया। लेकिन इसी concept के आधार पर नासा ने 1977 में एक दूसरा mission शुरू किया जिसे voyager program नाम दिया गया और इस program के अंतर्गत दो spacecrafts को launch  किया गया था, जिसमें voyager 1 और voyager 2 शामिल थे।

इसके बाद 20 अगस्त 1977 को voyager 2 को launch किया गया था और इसके ठीक 16 दिनों बाद 5 सितंबर 1977 को voyager 1 को launch  किया गया। इन दोनों ही spacecraft के माध्यम से हम solar system के सभी ग्रहों को काफी करीब से देख पाएं है। लेकिन जैसा सोचा गया था वैसा हुआ नहीं और  इस program में Pluto छूट गया।

Voyager FlyBy

वही voyager 2 ने ब्रहस्पति ग्रह, यूरेनस और नेपच्यून को flyby किया था, लेकिन voyager 1 केवल ब्रहस्पति और फिर शनि और फिर उसके बाद उसने टाइटन जोकि शनि ग्रह का सबसे बड़ा चाँद है को flyby किया था। बाद में उसने इतनी Velocity हासिल कर ली थी कि, वह सौरमंडल के बाहर जा सके और अपनी आगे के सफ़र को तय कर सके।

Voyager 1 अपने launch से करीब 3 साल 3 महीने और 9 दिन के planetary mission के बाद सीधा अपने अनजाने से सफर पर चल दिया। वायेजर 1 को अपने आगे के उस सफ़र पर क्या मिलने वाला था। इसके बारे में किसी को भी कोई जानकारी नहीं थी, और यह भी मालुम नही था की यह spacecraft अब आगे और कितनी दूरी तक successfully travel करने वाला है। 

Voyager 1 Interstellar Travel

वही दूसरी तरफ voyager mission के launch  के 41 साल बाद आज भी इसका सफर जारी है। आज के समय में अगर इस स्पसक्रेफ्ट की दूरी देखि जाये तो यह spacecraft करीब 21.7 अरब किलोमीटर दूरी तय कर चुका है। 25 अगस्त 2012 को voyager ने हमारे सौरमंडल की Boundary को Cross किया था और इसी के साथ यह पहला मौक़ा था, जब मानव द्वारा बनाएं किसी भी ऑब्जेक्ट ने सौरमंडल से बाहर कदम रखा हो।

VOYAGER 1
VOYAGER 1

आज यह हमसे 145 astronomical units दूर है, एक Astronomical Unit की दूरी सूरज और हमारी पृथ्वी के बिच की दूरी को कहा जाता है। इस दूरी का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है की यह spacecraft हमसे धरती और सूरज के बीच की दूरी का 145 गुना ज्यादा दूर जा चुका है। लेकिन आज भी इतनी दुरी तय करने के बाद भी वैज्ञानिक इसे trace कर पाने में संभव है और आज भी यह हमारे संपर्क में बना हुआ है, लेकिन आखिर कब तक Voyager 1 हमारे संपर्क में रहेगा? यह आज एक सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है

वायेजर मिशन नासा से संपर्क कैसे करता है?

इस सवाल का जवाब जानने से पहले हमें यह जानना होगा कि, Voyager 1 हमसे कैसे संपर्क करता है या हम किस तरह से voyager 1 से data receive करते हैं। Voyager 1 से data receive करने के लिए सबसे पहले 20 किलो वाट के Radio signal को धरती पर लगे बड़े बड़े Telescope के जरिए Voyager 1 की तरफ भेजा जाता है। इन signals को voyager 1 तक पहुंचने में करीब 21.7 अरब किलोमीटर का सफर तय करना होता है। इस सफर को तय करने में radio signal को लगभग 20 घंटे का समय लगता है। जिसके बाद वायेजर 1 में लगे sensitive antenna, धरती से भेजे गये signal को catch कर लेता है।

जिसके बाद voyager 1, 20 वाट का एक radio signal धरती की तरफ भेजता है। धरती की तरफ आने वाले इस सिग्नल को transmit करना पड़ता है। क्योंकि इतनी दूरी करने के दौरान signal काफी कमजोर भी हो जाता है। धरती तक आते आते यह Signal इतना कमजोर हो चुका होता है कि इसे Detect कर पाना हमारे लिए काफी मुश्किल हो जाता है।

लेकिन इस काम को DSN सफल बनाता है। DSN यानी कि Deep Space Network, यह Radio Observatory का एक world wide network है। धरती पर तीन जगहों स्पेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में DNS लगा हुआ है। यह radio observatory इतना ज्यादा sensitive है कि यह खराब से खराब और मद्धम से मद्धम frequency को भी आसानी से catch कर सकता है। यानी कि voyager 1 से आने वाला Signal कितना भी कमजोर क्यों ना हो यह deep space network उसे आसानी से पकड लेता है और Signal को हम तक आसानी से पहुचा देता है।

Voyager Mission का अंत कैसे होगा?

इस तरह से हम हर दिन deep space network system के through Voyager 1 से connect रहते हैं। पिछले 50 सालों से अंतरिक्ष से आने वाले signals को Detect करने के लिए अब Technology काफी ज्यादा विकसित हो चुकी है। वर्तमान समय की Technology से हम कई प्रकाश वर्ष दूर से आने वाले radio Signal को भी आसानी से Detect कर सकते हैं, क्योंकि अब हमारे radio antenna काफी कमजोर Signals को भी Detect कर पाने में सक्षम हो चुके हैं।

इस तरह से हम कह सकते हैं कि voyager 1 की Location को detect करने की हमारे लिए कोई लिमिट नहीं है। लेकिन यहां पर बड़ी समस्या यह है कि, voyager 1 Radioisotope Thermoelectric Generator (RTG) के माध्यम से चलता है। RTG सेल में एक छोटा Electricity Generator होता है जो कि यूरेनियम का उपयोग करके Electricity को Generator करता है।

इस प्रक्रियामें यूरेनियम की मात्रा कम होती जाती है। और इस तरह से RTG सेल को पूरी तरह से खत्म होने में कई साल लग जाएंगे। जिसका मतलब है की यह काफी लम्बे समय तक Service देने में सक्षम है।

Voyager 1 इस समय 17 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से आगे बढ़ता जा रहा है, और इसमें लगा हुआ RTG सेल अब धीरे धीरे कमजोर होता जा रहा है। जिसके कारण इसकी power पहले की तुलना में काफी ज्यादा कम हो चुकी है।

1990 में वायेजर 1 में लगे हुए कैमरे को भी बंद कर दिया गया था, ताकि इसकी Energy को बचाया जा सके और इसे अधिक ज्यादा दूरी तक लेकर जाया जा सके। अब ये मिशन बहुत दिनों से चल रहा है और वैज्ञानिकों ने अब यह दावा किया है कि, voyager 1 को साल 2025 तक ही संचालित किया जा सकेगा। यनि कि 2025 तक ही वायेजर 1 हमारे संपर्क में रह पायेगा।

ऐसा इसलिए क्योंकि 2025 के बाद voyager 1 का RTG इतनी Electric Power Supply नहीं कर पाएगा जिससे कि उसमें लगे हुए Scientific Instruments सही तरीके से काम कर सके और वो हमसे लगातार सम्पर्क में बना रहे। इसलिए अब voyager 1 ज्यादा दिनों तक हमारे संपर्क में रहने वाला नहीं है। इस तरह से कहा जा सकता है, कि voyager 1 का अंत 2025 तक होने वाला है।

Voyager 1 की अभी की अवस्था

इस समय वायेजर 1 में कुल 11 Scientific Instruments लगे हुए है। voyager 1 में लगे उपकरणों की बात की जाए तो इसमें टेलीविजन कैमरे, infrared and ultraviolet sensors, magnetometer, plasma Detector, cosmic-ray और charged-particle sensor जैसे कई दूसरे instruments शामिल है। वही इसके अंदर 55 भाषाओं में अनुवादित एक गोल्डन रिकॉर्ड भी रखा गया है। नासा के लिए selected record की सामग्री में से 115 analog encoded photo एवं विभिन्न प्रकार के sound भी इसमें शामिल किए गए हैं, जिससे की इसे संचार के मध्यम से Connect करने में किसी तरह की कोई परेशानी ना आये। लेकिन आपको बता दे की इतना समय गुजर जाने के बाद इसमे लगे हुए Instruments में से इस समय सिर्फ 4 Instruments ही सही तरीके से काम कर रहे है.

निष्कर्ष

वायेजर 1 की दूरी जैसे जैसे हमसे बढती जायेगी और 2025 तक इसमें लगा हुआ RTG कमजोर होता जाएगा, उसके बाद इसमें लगे Instruments धीरे धीरे respond करना बंद कर देंगे। जिसके साथ ही इसका connection धरती से भी टूट जाएगा। इस तरह से यह महानतम मिशन वायेजर 1 अंतरिक्ष में ही कहीं गुम हो जाएगा।

इस mission ने अब तक अपने कई उद्देश्यों को सही से पूरा किया है और उनमें काफी सफलता भी मिली है। voyager mission ने बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून जैसे outer planets के बारे में भी काफी जानकारियां जुटाई है.

इस तरह से आज हम यह कह सकते हैं कि यह Mission काफी सफल रहा है और यह Mission काफी बड़ा भी रहा है जो कि अब भी जारी है।

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